भांडीर वन: संतान प्राप्ति और दांपत्य सुख का चमत्कारी स्थान
यदि आप ब्रज आए हैं, वृंदावन आए हैं, तो भांडीर वन के दर्शन अवश्य करें। यह वह दिव्य स्थान है जहां भगवान कृष्ण और राधा रानी का अद्भुत संयोग हुआ था। जिस वृक्ष के नीचे यह लीला हुई, उसी स्थान को आज पूरे ब्रज में भांडीर वन के नाम से जाना जाता है।
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📜 भांडीर वन की दिव्य कथा
नंद बाबा गाय चराने गए थे और कृष्ण को सीने से लगाए हुए थे। तभी तेज आंधी-तूफान आने लगा। इतने में एक कन्या प्रकट हुई और बोली —
“बाबा परेशान मत होइए, बालक हमें दे दीजिए।”
जैसे ही कन्या कृष्ण को लेकर आगे बढ़ी, तुरंत वहीं ब्रह्मा जी प्रकट हो गए और दिव्य लीला आरंभ हुई। जहां यह लीला हुई, उसी वृक्ष के नीचे राधा–कृष्ण का संयोग हुआ और वह स्थान ‘भांडीर कम नम नाम तीर्थम् परम उत्तम’ कहलाया (ब्रह्म पुराण)।
💑 दांपत्य में अनबन? तलाक तक स्थिति? – इसी स्थान पर मिलता है समाधान
भांडीर वन का चमत्कारी महत्व पूरे ब्रज में प्रसिद्ध है। यहां पति–पत्नी जिनके बीच खटपट हो, मनमुटाव हो, यहां तक कि तलाक की नौबत आ गई हो — वे यहां सिंदूर चढ़ाते हैं और धागा सूत बांधते हैं। विश्वास है कि राधा–कृष्ण की कृपा से उनका दांपत्य पुनः मधुर हो जाता है।
- पति–पत्नी में प्रेम बढ़ता है
- घर में शांति आती है
- संबंध टूटने से बच जाते हैं
- कन्याओं को सुंदर घर-वर की प्राप्ति होती है
👶 संतान प्राप्ति के लिए भांडीर वन क्यों प्रसिद्ध है?
भांडीर वन के पास ही स्थित है वरा कूप (Varah Koop)। यह वही स्थान है जहां भगवान वरा देव स्वयं प्रकट हुए थे और कूप को वरदान दिया था —
“जो देवी इस कूप का जल पान करेगी, उसकी कोख से सुंदर संतान का जन्म होगा।”
दूर-दूर से माताएँ इस कूप का जल लेने आती हैं और 10–20 वर्षों के बाद भी संतान प्राप्ति के चमत्कार देखे गए हैं। इसलिए वरा कूप को संतान प्राप्ति का दिव्य, सिद्ध एवं जागृत स्थान माना जाता है।
🌊 वरा कूप और स्नान का महत्व
शास्त्रों में वर्णन है:
“तत्र कुंडे महाभाग, बहु पुण्यं लभ्यते। तत्र स्नानं प्रवरा…”
यहां के कुंडों में स्नान करने से न केवल मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि ब्रज की रज से आत्मा शुद्ध होती है।
ब्रज में कहा गया है —
“ब्रज-भूमि में जिसने प्राण छोड़े, वह सीधे मेरे लोक में आता है।” — श्रीकृष्ण
📍 भांडीर वन कहाँ है?
- वृंदावन से लगभग 5 किलोमीटर
- तुलसीवन आश्रम से आगे
- माठ तहसील से थोड़ी दूरी पर
यह स्थान आज भी उतना ही जागृत और चमत्कारी है जितना द्वापर युग में था।
